सरपट दौड़ी रियो

हर्दा ना मारग माथै

इच्छा नो घोड़ो!

मन मालिक

इन्द्रियं नी चाबुक थकी

मारै वार-वार।

आँखं माथै

अज्ञान नीं

पट्टी बांध्या थका

घोड़ो नै

क्यं जावू

ई'ज खबर न्हें...

बस दौडतो'ज जाई रियो है

मालिक नै

ईशारं माथै।

दौड़ते-दौड़ते

अवै

वगड़ी ग्यो है

संयम नी लगाम वते

नती रुकातो।

सवार लाचार बणी

सब जोई रियो है

खबर न्हें

क्यं जाई नै ऊभो'र हैगा

इच्छा नो

हाराबार

घोड़ो..!

स्रोत
  • सिरजक : विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै