आत्मा पर कवितावां

आत्मा या आत्मन् भारतीय

दर्शन के महत्त्वपूर्ण प्रत्ययों में से एक है। उपनिषदों ने मूलभूत विषय-वस्तु के रूप में इस पर विचार किया है जहाँ इसका अभिप्राय व्यक्ति में अंतर्निहित उस मूलभूत सत् से है जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के बाद भी जिसका विनाश नहीं होता। जैन धर्म ने इसे ही ‘जीव’ कहा है जो चेतना का प्रतीक है और अजीव (जड़) से पृथक है। भारतीय काव्यधारा इसके पारंपरिक अर्थों के साथ इसका अर्थ-विस्तार करती हुई आगे बढ़ी है।

कविता35

घर मोढां पर

राजूराम बिजारणियां

लागती ला में उम्बाड़ियं

कैलाश गिरि गोस्वामी

हाइकु

घनश्याम नाथ कच्छावा

नदी री पाळ

रचना शेखावत

खुसी रो काळ

निशान्त

आतमा रो मोल

गौरीशंकर प्रजापत

थूं जद

सुरेन्द्र सुन्दरम

नीं करूं मुजरो

इरशाद अज़ीज़

रातां

सोनाली सुथार

हींडो

घनश्याम नाथ कच्छावा

तिरस

ओम पुरोहित ‘कागद’

मन री लकीरां

बाबूलाल शर्मा

अग्नि

मालचंद तिवाड़ी

आखर बोल : आखर बांच

हरीश भादानी

अंतस दीठ

रचना शेखावत

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल

गळै री कंठी

कृष्णा आचार्य

आखड़'र पड़ैला

मधु आचार्य 'आशावादी'

जीवड़ा (83)

सुंदर पारख

पडूत्तर

चन्द्र प्रकाश देवल

रेत मांय रळग्यो

मधु आचार्य 'आशावादी'

मोबाइल

घनश्याम नाथ कच्छावा

चालणी

हरीश बी. शर्मा

फरूकण लागी है डावी आंख

मीठेश निर्मोही

आतमा सूं

भगवती लाल व्यास

मनक परतेम रेजू रे

कैलाश गिरि गोस्वामी

साच रा कपड़ा पैरावै

मधु आचार्य 'आशावादी'

इच्छा नो घोड़ो

विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप'

खतावणी

चन्द्र प्रकाश देवल

ओळखांण

चन्द्र प्रकाश देवल

साम्हीं क्यूं नीं आवै

मधु आचार्य 'आशावादी'

रे मन !

मधु आचार्य 'आशावादी'