रातां जूण रो

बो सोग है,

जिकै रो दुख

जी भर’र,

बिलाप कर्‌या पाछै भी

निवड़ै नीं है।

रातां जूण रो

बो उपहार है,

जिको उणनै कदैई

चईजतो नीं हो

जिणरी जरूरत नीं हुंवती

पण फेर भी

संभाळ’र

राखणो पड़ रैयो है।

स्रोत
  • सिरजक : सोनाली सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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