उण म्हारी आंख में

आंख गडाय बूझ्यौ—

''कांई ओळखांण छै आपरी

बतावोला नीं कांईं?''

म्हैं उणसूं निजर मिलाय कह्यौ—

म्हारी ओळखांण

विजोग अर उडीक रौ बागौ

म्हारी ओळखांण

मिरतु अर मूंन री बुणगट रौ खाकौ।

म्हैं ओळूं सूं ओळखीज सकूं

अेक झुरता जीव रै आंगै ओळखीजूं

दुमनाई में थूं म्हनै देख सकै

म्हारौ झपकौ हतासा में पड़ै।

म्हारी ओळखांण रा अेहलांण

म्हारै डावा भंवारा मांयली टांकी कोनीं

नीं आंख हेटलौ मुस

नीं डावा कांन कनलौ तिल

नीं कमर माथै लहसुणियौ म्हारी ओळखांण

नीं आधार कारट में मंड्योड़ी आंख री पूतळी

के अंगोठा री छाप म्हारी ओळखांण नीं

म्हैं आं सूं ओळखीजतौ थकौ

कोनीं ओळखीजूं म्हारौ पतियारौ करौ।

अेक ओळखांण सूं म्हनै कोईक ओळखै

के म्हैं घणी ताळ

चांद कांनी नीं देख सकूं

म्हारी आंख्यां रा पांणी में ज्वार आय जा

अर पैलड़ी प्रीत रौ पैलड़ौ दरसाव धुंधळाय जा

आंसुवां रै परिंडै री ठाडास में

दोय कुरसियां रै काठ काढ्या छा कीं बोल आंम्ही-सांम्ही

असल में छा जिका ओळबा

अै ओळबा कोनीं ओळखांण

म्हैं कोनीं चावूं इण छिब में ओळखीजणौ।

‘म्हारी आतमा री धजा माथै

कोई ‘अेंबलम’ कोनीं

नीं धरम रौ कोई निसांण

वा साफ कोरी सलेट

किणी नै वठै कीं नीं दीसै

तौ इणरौ म्यांनौ नीं

के म्हारी कोई ओळखांण कोनीं छै!

म्हैं मर्‌यौ कोनीं, पण मर सकूं

आपरी मनचाही ओळखांण सारू!

म्हैं चावूं के जगत म्हनै ओळखै

के अेक आदमी छौ दोय हाथ-पगवाळौ

जिकौ अठै जीवियौ

अर मर्‌यां पूठै चावतौ छौ

आपरी न्यारी ओळखांण!

उणरी अेक इंछा छी निरवाळी

उणरै नीं रैयां

लोग उणनै उणरै दूध सूं ओळखै

मतलब के मायड़भासा सूं!

बात जबरी

के वौ मर्‌यौ नीं मायड़भासा सारू

पण जीव नीं सक्यौ मायड़भासा टाळ।

स्रोत
  • पोथी : अबोला ओळबा ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : सर्जना, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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