समंदर भर्या

संसार में

अेक तूं

तो छै

जीन्है दिल

दिन-उठ

आठो पहर

याद कर छै!

सो बा दे

जाग बा दे...

सांसा के मनका पै

असी कांई

भरकी फेरग्यो रे!

अेक कर मल्या छै

म्हारा दिन अर रात

भलांई काढै तो गळ्याई छै

चतर चोकड़ियां भरबा हाळा

मन कै बांधग्यो ओळख की

काचा सूत की जेवड़ी बणा’र,

सात्यां माढ-माढ’र...

मिटा'र रह्या छै बार-बार

थारै राजी खुसी का

जाणै कसी धुन में

लगोलग अे दोनूं हाथ।

स्रोत
  • सिरजक : मंजू किशोर 'रश्मि' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
जुड़्योड़ा विसै