संसार पर कवितावां

‘संसरति इति संसारः’—अर्थात

जो लगातार गतिशील है, वही संसार है। भारतीय चिंतनधारा में जीव, जगत और ब्रहम पर पर्याप्त विचार किया गया है। संसार का सामान्य अर्थ विश्व, इहलोक, जीवन का जंजाल, गृहस्थी, घर-संसार, दृश्य जगत आदि है। इस चयन में संसार और इसकी इहलीलाओं को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता43

बीजी दुनियां थारी-म्हारी

राजूराम बिजारणियां

सतिये नै सीख

सत्येन्द्र सिंह चारण झोरड़ा

धुंवाड़ौ

उपेन्द्र अणु

बैठी बैठी बोली यूं

मोहम्मद सदीक

कुण है वो

मदन गोपाल लढ़ा

सबद : अेक

प्रमोद कुमार शर्मा

मां

तेजस मुंगेरिया

बसंत कद आवसी

सत्यदीप ‘अपनत्व’

म्हारै सारू

दुलाराम सहारण

मौत

सत्यप्रकाश जोशी

नीं सीखूंला म्हैं

संजय आचार्य 'वरुण'

रंगमंच

लक्ष्मीनारायण रंगा

सुपनौ अर जथारथ

वाज़िद हसन काजी

जगत रो मिजाज

रेणुका व्यास 'नीलम'

बाटियो

घनश्याम नाथ कच्छावा

विश्वसुन्दरी रै मिस

अन्नाराम ‘सुदामा'

जोत उजाळी

कुन्दन माली

बंतळ

ऋतुप्रिया

प्रीत पांण

दुलाराम सहारण

मा

कैलाश मंडेला

पड़दो

रचना शेखावत

हथियार अर थारी कूंख

अर्जुन देव चारण

स्रिस्टी रो चक्को

पूनमचंद गोदारा

रेत रो हेत

ओम पुरोहित ‘कागद’

रोईड़ौ

मणि मधुकर

बदळती मानता

सुशीला ढाका

भूलणो

सत्यप्रकाश जोशी

दुनियादारी

अनिल अबूझ

चातरिक जुग

चेतन स्वामी

भोळियौ

विवेकदीप बौद्ध

बुध घणी बळवान

भारती कविया

सबद-स्तूप

गोपाल जैन

आसक्ति (15)

सुंदर पारख

खुसी रो काळ

निशान्त

खतरौ घणौ है दुणिया माय

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

नान्ही कवितावां

लक्ष्मीनारायण रंगा