दुख पर कवितावां

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

कविता79

अबूलेंस

देवीलाल महिया

बहुवचन

चन्द्र प्रकाश देवल

अेक ठहर्योड़ी दोप’री

गोरधन सिंह शेखावत

हथेळी रा छाला

मनोज शर्मा

पिसतावो

कन्हैयालाल सेठिया

अंधारै रा घाव

पारस अरोड़ा

मीठी मायड़ भासा

निर्मला राठौड़

रंग-बदरंग

गोरधन सिंह शेखावत

आंसूवां री भासा

ज़ेबा रशीद

अणबोली बात

विजय राही

जुझारू रो सवाल

रतना ‘राहगीर’

म्हैं नीं हारी

चंद्रशेखर अरोड़ा

पईशा आली में

ललित लहरी

पिंजरै में फगत

पुनीत कुमार रंगा

जीवन

रामकुमार भाम्भू

सबदां रा रामतिया

चंद्रशेखर अरोड़ा

बादळ

दुष्यन्त जोशी

आखड़ी

अर्जुन देव चारण

राजस्थानी

रेवतदान कल्पित

धीयां नै

सत्यप्रकाश जोशी

कतनी बार मरूं

रघुराजसिंह हाड़ा

साख राजा मालदेव री

सत्यप्रकाश जोशी

सेयर बाजार

अर्जुन देव चारण

अेक पीड़

किरण राजपुरोहित 'नितिला'

खेत री बां जमीन

गौरी शंकर निम्मीवाल

ऊंडी भखारियां

अर्जुन देव चारण

थारी धांसी

पारस अरोड़ा

थारी गाथा

अर्जुन देव चारण

नींद अर बातां

अर्जुन देव चारण

दीप सिखा कैवै है

रतनलाल दाधीच

वो भेजै थनै

अर्जुन देव चारण

उडीक

पारस अरोड़ा

अथड़ातु मन

भोगीलाल पाटीदार

दरद

रमेश मयंक

पारधी

पूनमचंद गोदारा

हूक री कूक

मोहम्मद सदीक

ओळूं आसी

संदीप 'निर्भय'

दरद

पुनीत कुमार रंगा

म्हारो दरद

चन्द्रकान्ता शर्मा

बगत री बात

ज़ेबा रशीद

म्हारो घर

पुनीत कुमार रंगा

म्हारी जग्या राख'र देख

श्याम निर्मोही

कोढियो काळ

रामनिवास सोनी

पनजी मारू

गोरधन सिंह शेखावत

तड़फता दोय जीव

देवीलाल महिया

बारै कठै लाधै?

भारती कविया