दुख पर कवितावां

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

कविता89

अबूलेंस

देवीलाल महिया

अबूलेंस

देवीलाल महिया

ओळूं आसी

संदीप 'निर्भय'

ओळूं आसी

संदीप 'निर्भय'

दरद

पुनीत कुमार रंगा

दरद

पुनीत कुमार रंगा

म्हारो दरद

चन्द्रकान्ता शर्मा

म्हारो दरद

चन्द्रकान्ता शर्मा

बगत री बात

ज़ेबा रशीद

बगत री बात

ज़ेबा रशीद

म्हारो घर

पुनीत कुमार रंगा

म्हारो घर

पुनीत कुमार रंगा

म्हारी जग्या राख'र देख

श्याम निर्मोही

म्हारी जग्या राख'र देख

श्याम निर्मोही

कोढियो काळ

रामनिवास सोनी

कोढियो काळ

रामनिवास सोनी

पनजी मारू

गोरधन सिंह शेखावत

पनजी मारू

गोरधन सिंह शेखावत

तड़फता दोय जीव

देवीलाल महिया

तड़फता दोय जीव

देवीलाल महिया

बारै कठै लाधै?

भारती कविया

बारै कठै लाधै?

भारती कविया

मथारौ

नाथूसिंह इंदा

मथारौ

नाथूसिंह इंदा

कविता री मौत

पूर्ण शर्मा ‘पूरण’

कविता री मौत

पूर्ण शर्मा ‘पूरण’

आठौ काळ

रेवतदान चारण कल्पित

आठौ काळ

रेवतदान चारण कल्पित

हलाल रो मांस

गोरधन सिंह शेखावत

हलाल रो मांस

गोरधन सिंह शेखावत

पांगळी

मणि मधुकर

पांगळी

मणि मधुकर

जोग

मणि मधुकर

जोग

मणि मधुकर

धरती री मुळक

रमेश मयंक

धरती री मुळक

रमेश मयंक

गंदी हवा

चंद्रशेखर अरोड़ा

गंदी हवा

चंद्रशेखर अरोड़ा

पाप-बोध

सत्यप्रकाश जोशी

पाप-बोध

सत्यप्रकाश जोशी

अमूझणी भर्‌या दिन

भगवती लाल व्यास

अमूझणी भर्‌या दिन

भगवती लाल व्यास

थारी जुर्‌रत कोई

देवीलाल महिया

थारी जुर्‌रत कोई

देवीलाल महिया