लिखदौ म्हारै रूह माथै राजस्थानी

रग-रग में रमाय लौ राजस्थानी

अंतस में बसाय लौ मायड़ नै

कंठ में लौ बसाय

हिरदै लेवौ लगाय।

सोय लिया घणा दिन

अब तौ जागौ नींद सूं

मायड़ आपणी भटकै है

दर-दर री ठोकर खावै है

क्यूं भटकावौ मायड़ नै?

किंवाड़ खौलौ हिरदै रा

अंतस लैवौ बसाय।

निज भासा नै छोड'र

परायी नै क्यूं पनपावौ हौ

परभासा तौ है बांडकी

मायड़ आपणी भोळकी

अमूझी मोकळी

अब मत चुगळावौ थे।

मान बधावौ मायड़ रौ

आखर मांडौ मायड़ में

गांव गळी अर स्हैर में

स्कूलां अर दफ्तर में

पाती चेपौ मायड़ री

काम करौ मायड़ में।

आखर मांडौ मायड़ में

आथूणली री होड़ में

मत भूलौ मायड़ नै

मायड़ तौ है मीठी मावड़ी

लूंठी निरवाळी मोवणी

बोलणं सूं अमिरस झरै

आखर-आखर मिणियां रळै

देवनागरी इण री लिपि है

व्याकरण इणरौ है सोवणौ

सबद कोस विसाल घणौ

इज अपणी मीठी मायड़ भासा है।

स्रोत
  • सिरजक : निर्मला राठौड़ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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