दुख पर गीत

दुख की गिनती मूल मनोभावों

में होती है और जरा-मरण को प्रधान दुख कहा गया है। प्राचीन काल से ही धर्म और दर्शन ने दुख की प्रकृति पर विचार किया है और समाधान दिए हैं। बुद्ध के ‘चत्वारि आर्यसत्यानि’ का बल दुख और उसके निवारण पर ही है। सांख्य दुख को रजोगुण का कार्य और चित्त का एक धर्म मानता है जबकि न्याय और वैशेषिक उसे आत्मा के धर्म के रूप में देखते हैं। योग में दुख को चित्तविक्षेप या अंतराय कहा गया है। प्रस्तुत संकलन में कविताओं में व्यक्त दुख और दुख विषयक कविताओं का चयन किया गया है।

गीत9

कद तांई दुख नै पीणौ है?

बी. आर. प्रजापति

सावण में नी आवड़ै

किशोर कल्पनाकान्त

दुख री लागी दूणा

मोहम्मद सदीक

दुख-सुख

किशोर कल्पनाकान्त

गीत

रघुराजसिंह हाड़ा

मौत सांसां नै छलगी रे

भागीरथसिंह भाग्य

मेरो दम तो घुटतो जावै

चंद्र सिंह बिरकाळी

गीत

सत्यदीप ‘अपनत्व’