बा कत्तई कोनी बोली

मूंडो भी कोनी खोली

सबन ने बासू हामल भरी

के सब ऊके सागै छै

बराबर की लुगायां ने बा की बाथ भरी

पुचकारी और आंख्यां पूंछी पल्लू सू

बड़ी आदमण हिम्मत राखबा की खी

अपणा अपणा दनन कूं याद कर

जमारो काटबा की सला दी

ऊकी छोर्‌यां पछाड़ी ऊबी हो’र

धर्‌या ऊका कंधान पर आपणा दोनूं हाथ

बेटा भी छा घणा उदास

उणने भी पूछी आपणा-आपणा ढब सू

कि मांई कांई दुख पायो हमसूं?

पाड़ोसी भी भेळा होग्या घर मं

और सब बेजा पूछबो चाबै दुख ऊको

और बताबो चाबै कोई पुरखान को तौर-तरीको

बा कत्तई कोनी बोली

मूंडो भी कोनी खोली

जाणै कुणकी बाट न्हाळै छी बा

कुणनै सुणाबो चाबै छी आपणा बोल

जे समझतो ऊंका आंसुओं को मोल

सब जणान ने या बी जाणबो चायो

कि कुण छै बा

जेसूं बा कांई केहबो चाबै

पण बा कत्तई कोनी बोली

मूंडो भी कोनी खोली!

स्रोत
  • पोथी : कथेसर ,
  • सिरजक : विजय राही ,
  • संपादक : रामस्वरूप किसान
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