होळी पर कवितावां

रंग-उमंग का पर्व होली

कविताओं में व्यापक उपस्थिति रखता रहा है। होली में व्याप्त लोक-संस्कृति और सरलता-सरसता का लोक-भाषा की दहलीज़ से आगे बढ़ते हुए एक मानक भाषा में उसी उत्स से दर्ज हो जाना बेहद नैसर्गिक ही है। इस चयन में होली और होली के विविध रंगों और उनसे जुड़े जीवन-प्रसंगों को बुनती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता11

फागण महिणौ फूठरो

रामाराम चौधरी

रागां रास रचावै

बुलाकी दास बावरा

फागणिये री रीत

छत्र छाजेड़ 'फकड़'

होळी नो तैवार है आज़े

विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप'

मैं होळी खेली एक बार

बुद्धिप्रकाश पारीक

होळी

कौसर भुट्टो

त्यूंहार

राजेन्द्र गौड़ 'धूळेट'

कैवी दीवारी कैवी होरी

द्वारिका वल्लभ जोशी

होळी

रंजना गोस्वामी

फागणियो आयौ

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'