रंग पर कवितावां

सृष्टि को राग और रंगों

का खेल कहा गया है। रंग हमारे आस-पास की दुनिया को मोहक और सार्थक बनाते हैं। प्रकृति रंगों से भरी है और इनका मानव जीवन पर सीधा असर पड़ता है; जबकि रंगहीनता को उदासी, मृत्यु, नश्वरता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यहाँ प्रस्तुत है—रंग और रंगों को विषय बनाने वाली कविताओं के विविध रंग।

कविता36

चकली

आभा मेहता 'उर्मिल'

प्रग्या

चन्द्र प्रकाश देवल

किळ्डौ

पूनमचंद गोदारा

सनमन

राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

जका सोध्या है आज

ओम पुरोहित ‘कागद’

सुपनां

अशोक जोशी ‘क्रांत’

कस्बो

प्रमोद कुमार शर्मा

रंग दे चादर

नैनमल जैन

कदास

सोनाली सुथार

भोर

सांवर दइया

कसूंबौ

पूजाश्री

आसक्ति (15)

सुंदर पारख

होळी

रंजना गोस्वामी

प्रेम की दो कूंपळां

हरिचरण अहरवाल 'निर्दोष'

अंधारा री ओळखाणा

रमाकान्त शर्मा

एक चोरंगी जिनगानी

रामस्वरूप ‘परेश’

रागां रास रचावै

बुलाकी दास बावरा

रगत री बिरखा

राजेन्द्र जोशी

पांती

मदन गोपाल लढ़ा

खुस है मा

मनमीत सोनी

काजळ

पूजाश्री

दो फाड़

ओम अंकुर

सुफेदी

पूर्ण शर्मा ‘पूरण’

आज कै? होळी है

भवानीसिंह राठौड़ 'भावुक’

उजास री सीरणी

राजेश कुमार व्यास

मूंडो दूधां धोयो

प्रेमजी ‘प्रेम’

चितेरा!

नैनमल जैन

प्रीत रा रंग

मदन गोपाल लढ़ा

रातौ रंग

शंभुदान मेहडू

संझ्या : तीन चतराम

प्रेमजी ‘प्रेम’

प्रीत-पांगळी

दुलाराम सहारण

होळी खेलो रै

श्याम गोइन्का