हास्य कविता पर लोकगीत

हास्य कविता अेङी कविता

जिण नै पढ़'र, सुण'र हियै मांय आनन्द, या हास रो भाव अर हास्य रस री उत्पति हूवै।

लोकगीत2

कैर री हूंस

लोक परंपरा

कीड़ी

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