कुदरत पर कवितावां

प्रकृति-चित्रण काव्य

की मूल प्रवृत्तियों में से एक रही है। काव्य में आलंबन, उद्दीपन, उपमान, पृष्ठभूमि, प्रतीक, अलंकार, उपदेश, दूती, बिंब-प्रतिबिंब, मानवीकरण, रहस्य, मानवीय भावनाओं का आरोपण आदि कई प्रकार से प्रकृति-वर्णन सजीव होता रहा है। इस चयन में प्रस्तुत है—प्रकृति विषयक कविताओं का एक विशिष्ट संकलन।

कविता62

डांडी रौ उथळाव

तेजस मुंगेरिया

अेकला बळै

आशीष बिहानी

नंग धड़ंग अरावळी

कन्हैयालाल सेठिया

धरती'र भासा!

कन्हैयालाल सेठिया

ठूंठ

गजेसिंह राजपुरोहित

काळ

कन्हैयालाल सेठिया

परेम

अंजु कल्याणवत

अै कठफोड़ा

शिवराज छंगाणी

सबद खोजू

चन्द्र प्रकाश देवल

परकत रा पसवाड़ा

गीतिका पालावात कविया

निनाण

महावीर प्रसाद जोसी

दु:खां रा मारग

इन्द्र प्रकाश श्रीमाली

पीळा पात

हुसैनी वोहरा

मिनख री भुंवाळी

सुमन बिस्सा

कुण सूरज री धूंणी तापै

गौरीशंकर ‘भावुक’

सज रैया है कैक्टस

किशोर कुमार निर्वाण

टीब्बा

अंजु कल्याणवत

पसु

रामस्वरूप किसान

मीठी तान

धनंजया अमरावत

थूर

शैलेन्द्र उपाध्याय

तीन मुक्तक

कल्याणसिंह राजावत

ध्वनि परस

रामस्वरूप किसान

अेक पानू फैरू खरीग्यू

भविष्यदत्त ‘भविष्य’

सौरम रो भभको

रामस्वरूप किसान

अंतस् मीठास

शिवराज छंगाणी

आसरौ

शिवराज छंगाणी

जुग-भीषम !

कन्हैयालाल सेठिया

सुवांज

चैन सिंह शेखावत

रूंख हड़मान जी

मनोज पुरोहित 'अनंत'

पैलड़ी जीत

ओमप्रकाश गर्ग 'मधुप'

कुदरत

श्रीमंतकुमार व्यास

आंधौ

मणि मधुकर

रूंख

भगवान सैनी

काल

नागराज शर्मा

संजीवणी आस

दीनदयाल ओझा

सूखा रूंख : गीला बोल

कल्याणसिंह राजावत

रेत में मधुमास

इन्द्र प्रकाश श्रीमाली

किरड़कांटियो

कन्हैयालाल सेठिया

स्यात यूं मुळकै

सतीश छिम्पा

रोहिड़ै रौ फूल

शिवराज छंगाणी

आसान कोनी

सुमन पड़िहार

बीज अर माटी री बंतळ

गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

प्रणय

ओमप्रकाश गर्ग 'मधुप'

उजास रै आंगणै

रतना ‘राहगीर’

रचीजै सिस्टी

सन्तोष मायामोहन

पखेरू नापे आकास

इन्द्र प्रकाश श्रीमाली

म्हारौ मारग

सुधीर राखेचा

बात

भारती पुरोहित