दरपण पर कवितावां

दर्पण, आरसी या आईना

यों तो प्रतिबिंब दिखाने वाला एक उपयोगी सामान भर है, लेकिन काव्यात्मक अभिव्यक्ति में उसका यही गुण विशेष उपयोगिता ग्रहण कर लेता है। भाषा ने आईने के साथ आत्म-संधान के ज़रूरी मुहावरे तक गढ़े हैं। इस चयन में प्रस्तुत है दर्पण को महत्त्व से बरतती कुछ कविताओं का संकलन।

कविता10

छोरी : तीन चितराम

मदन गोपाल लढ़ा

आरसी रौ छळ

चन्द्र प्रकाश देवल

काच

गोरधन सिंह शेखावत

आरसी

राजेन्द्र शर्मा 'मुसाफिर'

आरसी

कुमार अजय

आंख

अशोक जोशी ‘क्रांत’

आइनो

ज़ेबा रशीद

आपरी चूंच

यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

सुथरी आरसी

मोहनलाल पुरोहित

उण री मौजूदगी

कैलाश कबीर