माँ पर कवितावां

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

कविता195

मारग

चन्द्र प्रकाश देवल

आंगणैं रो हक

राजूराम बिजारणियां

हांचळ रौ हेज

सुमन बिस्सा

चेतै आयगी मां

आशीष पुरोहित

कारीगरी

राजूराम बिजारणियां

चानणो

अंजु कल्याणवत

मायड़

महेंद्रसिंह छायण

अेक रोटी

विजय राही

हरिया रूंख

अंजु कल्याणवत

भोळी चिड़कली

चंद्रशेखर अरोड़ा

गाजर रौ सीरो

अनिला राखेचा

बेटा कद आवैला गांव

राजूराम बिजारणियां

अबूलेंस

देवीलाल महिया

मा रिसाणी है

राजूराम बिजारणियां

बडेरा

रचना शेखावत

मंगती कोनी

देवीलाल महिया

थारी अर म्हारी बात

आईदान सिंह भाटी

छपरो

पवन सिहाग 'अनाम'

थूं कठै है

किरण राजपुरोहित 'नितिला'

पीळो पोमचो

कृष्णा आचार्य

म्हारा पिताजी

गौरी शंकर निम्मीवाल

दुःख

खेतदान

नेहचौ

चन्द्र प्रकाश देवल

मां थकी वधारै कुंण

हर्षिल पाटीदार

जूंझार

गोरधन सिंह शेखावत

मा

संजय पुरोहित

जीवणाधार

सुधा सारस्वत

मा रो परस

अजय कुमार सोनी

सपना

अर्जुन देव चारण

मां-बाप के बेई

शरद उपाध्याय

सनेसो

गीता सामौर

काळकी कुत्ती

राजेन्द्र बारहठ

ऊजळौ पख

कमल रंगा

मां री मैमा

निर्मला राठौड़

म्हारी मां!

किरण राजपुरोहित 'नितिला'

भरम टूटग्या

पद्मजा शर्मा

माँ रा सपना

राजदीप सिंह इन्दा

माँ

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

मायड़ भासा

आभा मेहता 'उर्मिल'

भूखमोचिनी

मदन गोपाल लढ़ा

मां

मीठेश निर्मोही

वो भेजै थनै

अर्जुन देव चारण