माँ पर दूहा

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

दूहा20

टग-मग टग-मग टुगां

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

मायड़ भासा रौ मोह

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

मायड़ मोटो मांण

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

ईला में ममता अेक

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

मायड़ रा मोह नै

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

थग-थग करतौ थड़ी

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

किसा अे देवै कमाय

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

सोनो दिस्यौ संसार

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

सौ-सौ देवत सुमर

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

आला गाबां सोवती

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

मायड़ मिली न मोय

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

कुळ मरजादा कांण

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

पैली तारीख लागतां

भागीरथसिंह भाग्य

दोहा : मा

जयसिंह आशावत

थट पड़तौ थाळ कुथाळ

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

चर-चर करती चिड़कल्यां

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

सबसुं मोटी संसार

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित

माता पाळ्यौ म्हनै

प्रह्लाद सिंह राजपुरोहित