माँ पर ग़ज़ल

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

ग़ज़ल2

सदा झुकाऊं सीस मावड़ी

गोकुल खिड़िया

मायड़ रा बोल

रतन सिंह चांपावत