माँ पर गीत

किसी कवि ने ‘माँ’ शब्द

को कोई शब्द नहीं, ‘ॐ’ समान ही एक विराट-आदिम-अलौकिक ध्वनि कहा है। प्रस्तुत चयन में उन कविताओं का संकलन किया गया है, जिनमें माँ आई है—अपनी विविध छवियों, ध्वनियों और स्थितियों के साथ।

गीत20

छाँव सरीखी बेटी है

राजूराम बिजारणियां

सीखड़ली

कानदान ‘कल्पित’

म्हूं बेटी बाबल री छोटी

छैलूदान चारण 'छैल'

घुघी दे दे मावड़ी

भागीरथसिंह भाग्य

सुण सुण री अम्मा

रामदयाल मेहरा

दूधै भरी कटोरी

चंद्र सिंह बिरकाळी

बातां म्हारी मा

कैलाशदान कविया

विस्थापन रो गीत

हरिमोहन सारस्वत 'रूंख'

गीत

मंगत बादल

सुरसती-वंदना

सोनी सांवरमल

बूढी मा रै काळजियै री

प्रहलाद सिंह झोरड़ा

मातृ-वन्दना

कान्ह महर्षि

म्हांरी माटी म्हांरी मा

बुलाकी दास बावरा

पीड़ा दीप जगादे

मेघराज मुकुल

माँ

मनीषा आर्य सोनी

लोरी - जाग जाग लाडेसर जाग!

चंद्र सिंह बिरकाळी

कपूत-सपूत

हिंगलाज दान कविया

हालरियौ

रेवतदान कल्पित