आग पर कवितावां

सृष्टि की रचना के पाँच

मूल तत्त्वों में से एक ‘पावक’ जब मनुष्य के नियंत्रण में आया तो इसने हमेशा के लिए मानव-इतिहास को बदल दिया। संभवतः आग की खोज ने ही मनुष्य को प्रकृति पर नियंत्रण के साथ भविष्य में कूद पड़ने का पहली बार आत्मविश्वास दिया था। वह तब से उसकी जिज्ञासा का तत्त्व बना रहा है और नैसर्गिक रूप से अपने रूढ़ और लाक्षणिक अर्थों के साथ उसकी भाषा में उतरता रहा है। काव्य ने वस्तुतः आग के अर्थ और भाव का अंतर्जगत तक वृहत विस्तार कर दिया है, जहाँ विभिन्न मनोवृत्तियाँ आग के बिंब में अभिव्यक्त होती रही हैं।

कविता26

दीठ-अदीठ

गजेसिंह राजपुरोहित

बळीतौ

मणि मधुकर

च्यार कवितावां

प्रहलादराय पारीक

आग

जगदीशनाथ भादू 'प्रेम'

जिद्दण रात (45)

सुंदर पारख

मारग री हूंस

चन्द्र प्रकाश देवल

निसतारौ

चन्द्र प्रकाश देवल

आग

अम्बिका दत्त

दीवा परतै बळतो रऊँ म्हूँ

विजय गिरि गोस्वामी 'काव्यदीप'

रीझ-रिझावण

भंवर कसाना

थांरो परस

विजयसिंह नाहटा

सिरजण अगन

लक्ष्मीनारायण रंगा

देस मांय

विप्लव व्यास

लाई

अम्बिका दत्त

बाटियो

घनश्याम नाथ कच्छावा

अग्नि

मालचंद तिवाड़ी

मीडी

छत्रपाल शिवाजी

जिंदगाणी

रचना शेखावत

लावौ दौ माचिस

पारस अरोड़ा

अभेद-भेद

कन्हैयालाल सेठिया

बण सोची ही

सत्यदीप ‘अपनत्व’

सबद : सात

प्रमोद कुमार शर्मा

बाटियो

घनश्याम नाथ कच्छावा

आग री ओळख

पारस अरोड़ा

अगनी मंतर

भगवती लाल व्यास