सदीव

साच नीं हुवै-

दीठ रौ

हरेक दरसाव

पण

अंतस में रेवै-

आखीजूण

भरम रौ भणकारौ।

सदीव

आंच नीं हुवै

अगन सो

हरेक अंगारौ

पण

भौभर में रेवै

अदीठ-अगन

फूंक दै, पळकारौ।

स्रोत
  • सिरजक : गजेसिंह राजपुरोहित ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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