प्रोमेथियस

सुरग सूं उचकाई जिकी अगन

उणसूं बणी छै म्हारी हाडक्यां

जिकी में अजतांई चापळयो्ड़ौ छै ‘फासफोरस’

जतन सूं अळगी राखूं

जिकी नै हरमेस पवन सूं

नींतर

भक्क सूं सिळग नै

भसमी बणतां कांई जेज लागै

पछै हरिद्वार री गंगा में

किस्या फूल ठाडा करूंला

धरा रौ अेक अंस

जिकौ गोठीपा गांव री सींव में छौ

वठै आभौ अेकर

नीचै लुळ परौ इळा नै परसण आयौ

उणीज घड़ी पुळ में

जळ बण्यौ म्हारौ रगत

अगन बण्यौ म्हारौ हाड

माटी म्हारी देही

पवन म्हारौ सांस

आभौ म्हारौ मन

कूंणां म्हारी दीठ

ध्रूंरोब म्हारी रूंवा

मायड़भोम बणी म्हारी चांम

चांमड़ी ईज तौ अजतांणी बांध्या राखै छै

डील रा सगळा ततबां नै अेकण ठौड़

थोड़ी-सीक गफलत व्हियां

म्हारा हाड अर म्हारौ रगत आपसरी में आथड़ परा

अगन-पांणी रौ जूंनौ वैर काढण ढूकै

माटी हंदौ देही रौ खोळ नीं व्है

तौ सै कीं विणसतां कांईं जेज लागै

म्हैं सपना में

कदै-कदैई थरहरतौ ओजकूं

के कठैई थूं झाळमुखी ज्यूं फाटगी

अर देही रौ चूगतौ लावौ बारै भभकग्यौ

तौ पछै गंगाजी नै

वांरी जळ-पांती कीकर सूंपूंळा

किण तरै

रथी में सिलगतौ अगन रौ लेहणौ उतारूंला

किण गत उतारूंला माटी रौ करज

किण भांत भसमी बण उड परौ करूंला पवन री फारगती

आभौ म्हनै

सूनी-सूनी आंख्यां सूं जोवतौ ईज रैय जावैला

कीं नीं कैय

बोली-बोली माटी म्हारी देही उडीकती रैय जावैला

सेवट म्हारौ निसतारौ दोरौ व्है जावैला

इण सारू म्हारी जलम-जलम री पूंजी!

झटकै म्हारौ पल्लौ मत छांड

थूं ईज तौ म्हारौ हंसौ छै

जिणरै जमा-खरच रौ कोई खातौ कोनीं

नीं देणा-पावणा रौ हिस्याब

म्हैं थारै आवण रा वावोड़ में

बिरखा री गुंजायस जांण

डेडका री गळाई टररायौ

मोरिया री गळाई नाच्यौ, कुरळायौ-

‘मेह आवौ, मेह आवौ!’

इणसूं बेसी कांईं करतौ?

पण सै-कीं थारै-म्हारै बिचाळै छै

दुनियां इण बाबत कीं नीं जांणै

जगती नै हिस्याब करण दे

वौ म्हारौ हिस्याब व्हैला फगत, म्हारौ निसतारौ नीं!

स्रोत
  • पोथी : तीजौ अयन ,
  • सिरजक : चन्द्रप्रकाश देवल ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम
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