आत्म पर कवितावां

आत्म का संबंध आत्मा

या मन से है और यह ‘निज’ का बोध कराता है। कवि कई बातें ‘मैं’ के अवलंब से कहने की इच्छा रखता है जो कविता को आत्मीय बनाती है। कविता का आत्म कवि को कविता का कर्ता और विषय—दोनों बनाने की इच्छा रखता है। आधुनिक युग में मनुष्य की निजता के विस्तार के साथ कविता में आत्मपरकता की वृद्धि की बात भी स्वीकार की जाती है।

कविता22

तवायफखानो

त्रिभुवन

आतम भूख

मालचंद तिवाड़ी

सींवां सूं बारै तांई

सत्यदेव संवितेन्द्र

थूं

सत्येन जोशी

समै रो फेर

दीपचन्द सुथार

भाग

खेतदान

ऊकचूक हुयोड़ौ

रोशन बाफना

मैं कुण

सुनीता बिश्नोलिया

खुद खातर

ज़ेबा रशीद

खुद नै ओळखणौ

बसन्ती पंवार

बागोळ

राधेश्याम मेवाड़ी

म्हारो वजूद

रति सक्सेना

थूं अर म्हैं

शंकरसिंह राजपुरोहित

काचर रो बीज

कुलदीप पारीक 'दीप'

अणकही

सोनाली सुथार

अणजाण

सोनाली सुथार

पाप-बोध

सत्यप्रकाश जोशी

अस्तित्व री राड़

उदयवीर शर्मा

छळावौ

पुनीत कुमार रंगा

दिन : आतमग्यान

सत्यप्रकाश जोशी

कीं ठीक नीं

धनपत स्वामी