म्हूँ क्यूँ मूंडो उतारूं!

जदै फागण रै जावतै ही

रुत अेकली व्है जावै

अर उणरै भाग में

आवै फगत परणपात।

क्यूँ मूंडौ उतारूं म्हूँ।

स्रोत
  • सिरजक : खेतदान ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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