जाग बोध पाप रा!

आतमा नै बींध

जिणसूं पड़ै उणमें दाग काळा

रात दिन थूं चूंठिया भर चेतना रै

डरै जिण सूं जुलम करतो जीव

झिझकै गुन्हा करतो!

आतमा सोरी घणी है इण जगत में

कुण सजा दे बावळी नै

सजा तो मन, देह झेलै न्याव री

अर पीड़ दूजा नै पुगावण रा करम री!

जाग सिंग्या पाप री

थूं वेदना दै आतमा नै अर बचालै

सिड़ण लागी अबूझी

अेक उपचार है उद्धार रो

थूं जाग काला बोध कोरी चेतना रा

पाप री ओळख करा दै आतमा नै।

स्रोत
  • पोथी : निजराणो ,
  • सिरजक : सत्य प्रकाश जोशी ,
  • संपादक : चेतन स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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