आत्मा बोली एक दिन—

इनसान रै सरीर माँय

थोड़ा दिन रैवणो

अर फेर निकळ भाजणो,

थोड़ा दिन फेर रैवणो

हर फेर कोई दूसरो ठीयो देखणो।

मन्नैं तो

सरीर-सारीर कीं नीं लागै

तवायफखानो!

स्रोत
  • सिरजक : त्रिभुवन ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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