लै बोल!

म्है बेचूं ईमान

खरीदैला?

देवैला मूडै मांग्या दाम?

जाणूं थूं मोलाय राखी है पीढ़ी

मेट दियौ फरक

कतळ अर आतम हित्या रौ

वगत नै गोडा-लकड़ी दे

थूं जीवतौ जीत लियौ सरग

क्यूं उलड़ावै हेज

नरक रै कीड़ां पर

रौ म्यानौ जोवण में

उळझगी म्हारी अक्कळ

आखिर

म्हारी कांई औकात?

कांई तौ पिद्धी

अर कांई पिद्धी रौ सोरवौ?

पण भायला!

अजकाल तौ

बेमौत मरणौ भी कोनी

मुफत-हकनाक

उणरा भी मिळै दाम

हादसै, मौकै, आसामी या औदै री

औकात पांण

अर म्हारै कनै तौ ले-दे

है फकत ईमान

या म्हारी जान

बोळ कांई खरीदेला?

देवेला मूंडे मांग्या दाम?

बोल! थूं खरीदैला?

म्है खुद कर लूँ जुगाड़

कोई हसीन हादसे रौ,

मरणो तौ है अेक दिन

कांई फरक पड़ै?

जे कोई वगत सूं पैला मरै?

लै बोल!

म्है बेचूं ईमान

ऊधड़ौ

खरीदेला?

जाणूँ

नीं सजै थारै हींग री गरज

म्हनै तौ मरणौ पड़सी भायला।

बिकण जैड़ा कौनी म्हारा भाग

म्है कोनी जिनस

ईमान रा कद कोई टका बाटिया?

जान?

नीं चावूं तौ भी

थारा फरजंद

चावै जद

कर देसी किचर-घांण

अर कचेड़ियां रै गोतां सूं

आखताय

झखमार करसी राजीपौ

अण-मोल समझणी औलाद

बाप री आधी ऊधी

कीमत आंक

सूं आछौ है

मोलायलै म्हारौ ईमान

थारै मरजी आये मोल

म्है म्हारी मनचायी

मौत तौ मर सकूं

बोल!

खरीदैला म्हारौ ईमान?

म्है बेचूँ

पूरे होस हवास में

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : सत्येन जोशी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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