म्हारे कनै

अेक ढिग लाग्योड़ो है

अणकही बातां रो।

किणी कैयो—

कहाणी कैय दै

किणी कैयो—

कविता घड़लै

किणी कैयो—

चाल, जी हळको करलै।

कठै सूं सरू हुसी बातां

बातां रो लेखो-जोखो

कदै राख्यो नीं हो।

लिखणी ही जिकी बातां

बै बुसक्यां बणगी,

कैवणी ही जिकी बातां

बै चुप होयगी।

अबार मुजब

फगत कीं किंतु-परंतु ईज है,

इणरै टाळ और कीं है, तो

बै है पिछतावा!

स्रोत
  • सिरजक : सोनाली सुथार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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