भै पर कवितावां

डर या भय आदिम मानवीय

मनोवृत्ति है जो आशंका या अनिष्ट की संभावना से उत्पन्न होने वाला भाव है। सत्ता के लिए डर एक कारोबार है, तो आम अस्तित्व के लिए यह उत्तरजीविता के लिए एक प्रतिक्रिया भी हो सकती है। प्रस्तुत चयन में डर के विभिन्न भावों और प्रसंगों को प्रकट करती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता25

चानणो

अंजु कल्याणवत

म्हारा दादो जी

अंकिता पुरोहित

दंगां रै पछै

श्यामसुंदर भारती

पण कद तांई

मदन सैनी

कित्तो'ई जाबतो करो

नवनीत पाण्डे

नौकरी

मोनिका गढ़वाल

कीड़ी चुगो

भगवती लाल व्यास

राड़ री जड़ बाड़

ओम पुरोहित ‘कागद’

चींत

प्रहलादराय पारीक

बोलबाला छै

हीरालाल सास्त्री

हांसी अर हाहाकार

जनकराज पारीक

रूप बदळतो डर

मोनिका गौड़

डर

दुलाराम सहारण

आंकस रै बीं बीज ने

मोहम्मद सदीक

भ्रिस्टवाड़ौ

सुधा सारस्वत

डरपणो

चन्द्र प्रकाश देवल

नूंई चपलां

राजेन्द्र सिंह चारण

मौत

मनोज कुमार स्वामी

बकरी चढ़ै चकरी

ओम पुरोहित ‘कागद’