जद बिन्नै कोनी मिली नौकरी

तो बण दोस मांड दियो—

आरक्षित वरग खाग्या म्हांरी नौकरी!

म्हैं बिन्नै इत्तो कैयो-

पण थे तो खावता आया हो

बां'को डील!

पीवता आया हो

बां'को रगत...

चालता आया हो,

बां'की लासां पर!

मिटाता आया हो,

बां'कै पाण थारी हवस..!

जे बै करली थोड़ी नौकरी

तो छूटगी थारै धुजणी...

बै कोनी खाई थारी नौकरी

थे खाया सदियां ताईं

नरभखी की ढाळ,

बान्नै कुचर-कुचर।''

स्रोत
  • सिरजक : मोनिका गढ़वाल ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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