डर नीं लागै

अंधेरै सूं...

अंधेरै सूं म्हारौ

जुगूं-जुग रौ सागीपौ हैI

अंधेरौ म्हारौ

जांणौजांण साच है!

म्हैं अंधेरै में

ओळख सकूं

वै सगळा करतब-

जिका रच्या थे धोळै-दोपारां

लूटण अंधेरौ!

म्हैं अंधेरै में

मैसूस सकूं

वै सगळी/वनि-गूंज -

जिकी सिरजौ थे मंझ-ऊजास

रचण अंधेरौ!

म्हैं अंधेरै में

कर सकूं फरक-

वां सगळां राजावां रा

जिका रचै जाळ

अंधेरौ मेटण रै ओळाव!

म्हैं अंधेरै में

जाबक नीं डरूं!

डर लागै थारै ऊजास...

जिकौ लेयनै आपरी चैंध

चूंधाय देवै म्हनै

अर लागूं म्हैं लेवण टंटोळा

खुद रै हुवणै नै ढूंढण रा!

स्रोत
  • सिरजक : दुलाराम सहारण ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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