तू पून मांगै

तो बै राड़ करै

तू सूरज रो तावड़ो मांगै

तो बै राड़ करै

तू आभै नीचै बैठणौ चावै

तो बै राड़ करै

तू धरती माथै चालै

तो बै राड़ करै

तू बोलणो चावै

तो बै राड़ करै!

तो बता-

ईं राड़ आडी बाड़

तूं कित्ता’क दिन कर सी!

छेकड़-

राड़ तो होवणी है

होवण दे...

जकै भूत स्यूं तू डरै

बो भूत नीं भुताड़ है

बीं नै बाळ दे

थारै सगळै रोगां री जड़

बाड़ है

ईं नै बाळ दे!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थळी – राजस्थानी मांय लोक चेतना री साहित्यिक पत्रिका ,
  • सिरजक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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