सुख पर कवितावां

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता72

अंतै धैजो धार

महेंद्रसिंह छायण

जमानो

निशान्त

घर

प्रवीण सुथार

खुसी रा गीत

किशोर कुमार निर्वाण

गरीब री पीड़

जेठानंद पंवार

खुसी रो काळ

निशान्त

अगवाणी नूंया साल की

रामदयाल मेहरा

अळगोजा

सोनी सांवरमल

होळी

रंजना गोस्वामी

दीप सिखा कैवै है

रतनलाल दाधीच

म्हारो गाँव

रामनिवास सोनी

पतियारो

मदन गोपाल लढ़ा

बिरखा

सुमेरसिंह शेखावत

थारै होवण नै

पवन राजपुरोहित

घाव-सुख

पारस अरोड़ा

काळ अर भूख

भगवती लाल व्यास

बरसाळो

मघाराम लिम्बा

हरख

शैलेन्द्र उपाध्याय

मोरचंग

प्रमिला शंकर

फागणियो आयौ

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

इतरावणजोग

तेजस मुंगेरिया

खुसी

सीमा भाटी

धन-धन-राजस्थान

कान्हा शर्मा

छळिया

मंजू किशोर 'रश्मि'

खुस है मा

मनमीत सोनी

थारै नांव

रवि पुरोहित

दड़ी घोटा

मोहन मण्डेला

मन घणो हलकावै रे

किरण बाला 'किरन'

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल

चिंता नीं करणी

नगेन्द्र नारायण किराडू

थारी आफळ

नंद भारद्वाज

चौमासु (सौमासु)

कैलाश गिरि गोस्वामी

भींत

हरीश हैरी

मरुधर

शिव 'मृदुल'

दोय घंट

दीपचन्द सुथार

काळो अंधियारो

कृष्णा आचार्य

अडाणगत सुख

चेतन स्वामी

डूंगर रौ हियौ

गोरधन सिंह शेखावत

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

सुख अर सिंवाळ

बाबूलाल शर्मा