सुख पर कवितावां

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता78

अंतै धैजो धार

महेंद्रसिंह छायण

धोरै री ढाळ माथै भासा

आईदान सिंह भाटी

इन्द्रधनूस

सुधा सारस्वत

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

दड़ी घोटा

मोहन मण्डेला

मन घणो हलकावै रे

किरण बाला 'किरन'

प्रीत री जेवड़ी

कृष्णा जाखड़

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल

चिंता नीं करणी

नगेन्द्र नारायण किराडू

थारी आफळ

नंद भारद्वाज

चौमासु (सौमासु)

कैलाश गिरि गोस्वामी

भींत

हरीश हैरी

मरुधर

शिव 'मृदुल'

दोय घंट

दीपचन्द सुथार

काळो अंधियारो

कृष्णा आचार्य

अडाणगत सुख

चेतन स्वामी

डूंगर रौ हियौ

गोरधन सिंह शेखावत

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

चोरी करी पण मै चोर कोनी

अवन्तिका तूनवाल

सुख अर सिंवाळ

बाबूलाल शर्मा

बादळी आज बरसती जा

पुखराज मुणोत

अणगिणत (31)

सुंदर पारख

पंखो

लक्ष्मीनारायण रंगा

चौबोली

शिवराज छंगाणी

सुख-दुख

अंजु कल्याणवत

जाजम

प्रहलाद कुमावत 'चंचल'

सरद रो अभिसार

रामनाथ व्यास ‘परिकर’

सावण

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

वो तोड़ै है

भगवती लाल व्यास

सुख

पूनमचंद गोदारा

भान

गौरी शंकर निम्मीवाल

आपरो आवणों

नैनमल जैन

स्कूल मअें छौरं

हर्षिल पाटीदार

सौंरम उछब री

श्याम सुन्दर टेलर

बालक री मुलकाण

रामसिंघ सोलंकी

हथेळी रा छाला

मनोज शर्मा

मदारी री सीख

भगवान सैनी

खेत रो हेत

श्याम सुन्दर टेलर

जमानो

निशान्त

घर

प्रवीण सुथार

खुसी रा गीत

किशोर कुमार निर्वाण

गरीब री पीड़

जेठानंद पंवार