सुख पर कवितावां

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता68

आपरो आवणों

नैनमल जैन

स्कूल मअें छौरं

हर्षिल पाटीदार

बालक री मुलकाण

रामसिंघ सोलंकी

हथेळी रा छाला

मनोज शर्मा

मदारी री सीख

भगवान सैनी

धोरै री ढाळ माथै भासा

आईदान सिंह भाटी

सावण

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

वो तोड़ै है

भगवती लाल व्यास

सुख

पूनमचंद गोदारा

भान

गौरी शंकर निम्मीवाल

इन्द्रधनूस

सुधा सारस्वत

सुख-दुख

अंजु कल्याणवत

जाजम

प्रहलाद कुमावत 'चंचल'

सरद रो अभिसार

रामनाथ व्यास ‘परिकर’

अंतै धैजो धार

महेंद्रसिंह छायण

जमानो

निशान्त

घर

प्रवीण सुथार

खुसी रा गीत

किशोर कुमार निर्वाण

खुसी रो काळ

निशान्त

अगवाणी नूंया साल की

रामदयाल मेहरा

अळगोजा

सोनी सांवरमल

होळी

रंजना गोस्वामी

दीप सिखा कैवै है

रतनलाल दाधीच

म्हारो गाँव

रामनिवास सोनी

पतियारो

मदन गोपाल लढ़ा

बिरखा

सुमेरसिंह शेखावत

थारै होवण नै

पवन राजपुरोहित

घाव-सुख

पारस अरोड़ा

काळ अर भूख

भगवती लाल व्यास

बरसाळो

मघाराम लिम्बा

हरख

शैलेन्द्र उपाध्याय

मोरचंग

प्रमिला शंकर

फागणियो आयौ

शकुंतला अग्रवाल 'शकुन'

इतरावणजोग

तेजस मुंगेरिया

खुसी

सीमा भाटी

धन-धन-राजस्थान

कान्हा शर्मा

छळिया

मंजू किशोर 'रश्मि'

खुस है मा

मनमीत सोनी

थारै नांव

रवि पुरोहित

दड़ी घोटा

मोहन मण्डेला

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल