सुख पर कवितावां

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता117

धोरै री ढाळ माथै भासा

आईदान सिंह भाटी

इन्द्रधनूस

सुधा सारस्वत

इण तरै रा सून्याड़ में

भगवती लाल व्यास

सुख-दुख

अंजु कल्याणवत

घर

प्रवीण सुथार

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

अंतै धैजो धार

महेंद्रसिंह छायण

जमानो

निशान्त

किणनै उडीकां हां

अर्जुनदेव चारण

म्हारे गांव रा लोग

भगवती लाल व्यास

दड़ी घोटा

मोहन मण्डेला

मन घणो हलकावै रे

किरण बाला 'किरन'

हेलो

अशोक परिहार 'उदय'

बरसाळौ

तेजस मुंगेरिया

प्रीत री जेवड़ी

कृष्णा जाखड़

हे! हरियाळा रूंखड़ा

कमल सिंह सुल्ताना

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल

चिंता नीं करणी

नगेन्द्र नारायण किराडू

थारी आफळ

नंद भारद्वाज

चौमासु (सौमासु)

कैलाश गिरि गोस्वामी

भींत

हरीश हैरी

लेनिन रै बखत

निकोलाइ अेस्येयेव

मरुधर

शिव 'मृदुल'

दोय घंट

दीपचन्द सुथार

जात निसरगी

किशोर कल्पनाकान्त

काळो अंधियारो

कृष्णा आचार्य

अडाणगत सुख

चेतन स्वामी

मंजिल

गोरधन सिंह शेखावत

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

चोरी करी पण मै चोर कोनी

अवन्तिका तूनवाल

सुख अर सिंवाळ

बाबूलाल शर्मा

बादळी आज बरसती जा

पुखराज मुणोत

अणगिणत (31)

सुंदर पारख

लेनिन पोथी

विताली कोरोतिच

खुसी रा गीत

किशोर कुमार निर्वाण

पांणत

रेवतदान चारण कल्पित

मिनख अर कीड़ी

श्याम सुन्दर टेलर

दीठ रो फरक

आरती छंगाणी

गरीब री पीड़

जेठानंद पंवार

खुसी रो काळ

निशान्त

अगवाणी नूंया साल की

रामदयाल मेहरा