सुख पर कवितावां

आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता,

शांति आदि की अनुभूति को सुख कहा जाता है। मनुष्य का आंतरिक और बाह्य संसार उसके सुख-दुख का निमित्त बनता है। प्रत्येक मनुष्य अपने अंदर सुख की नैसर्गिक कामना करता है और दुख और पीड़ा से मुक्ति चाहता है। बुद्ध ने दुख को सत्य और सुख को आभास या प्रतीति भर कहा था। इस चयन में सुख को विषय बनाती कविताओं का संकलन किया गया है।

कविता103

अंतै धैजो धार

महेंद्रसिंह छायण

इन्द्रधनूस

सुधा सारस्वत

इण तरै रा सून्याड़ में

भगवती लाल व्यास

बीज नै उगणो पड़सी

भीम पांडिया

धोरै री ढाळ माथै भासा

आईदान सिंह भाटी

सावण

सुनील कुमार लोहमरोड़ ‘सोनू’

धरती रो पग भारी

त्रिलोक गोयल

वो तोड़ै है

भगवती लाल व्यास

सुख

पूनमचंद गोदारा

भान

गौरीशंकर निमिवाळ

म्हारे गांव रा लोग

भगवती लाल व्यास

दड़ी घोटा

मोहन मण्डेला

मन घणो हलकावै रे

किरण बाला 'किरन'

हेलो

अशोक परिहार 'उदय'

बरसाळौ

तेजस मुंगेरिया

प्रीत री जेवड़ी

कृष्णा जाखड़

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

नुसखौ

चन्द्र प्रकाश देवल

चिंता नीं करणी

नगेन्द्र नारायण किराडू

थारी आफळ

नंद भारद्वाज

चौमासु (सौमासु)

कैलाश गिरि गोस्वामी

भींत

हरीश हैरी

मरुधर

शिव 'मृदुल'

सुख-दुख

अंजु कल्याणवत

दीपां रो त्युंहार

फतहलाल गुर्जर 'अनोखा'

जाजम

प्रहलाद कुमावत 'चंचल'

बावळा क्यूं सोचै दिन रात।

मानसिंह शेखावत ‘मऊ’

सूरज मुळकै

इरशाद अज़ीज़

सरद रो अभिसार

रामनाथ व्यास ‘परिकर’

उडीक

जितेन्द्र कुमार सोनी

जगमगाती दिवाळी

फतहलाल गुर्जर 'अनोखा'

आपरो आवणों

नैनमल जैन

स्कूल मअें छौरं

हर्षिल पाटीदार

रात

अशोक परिहार 'उदय'

सौंरम उछब री

श्याम सुन्दर टेलर

बालक री मुलकाण

रामसिंघ सोलंकी

हथेळी रा छाला

मनोज शर्मा

भरम गांठ

सत्यनारायण इन्दौरिया

मै’सूसो

मोहन आलोक

मां अर बेटो

सत्येंद्र चारण

बीज

चंद्र सिंह बिरकाळी

मदारी री सीख

भगवान सैनी

आकाश रो टुकड़ो

श्याम सुन्दर टेलर

खेत रो हेत

श्याम सुन्दर टेलर

जमानो

निशान्त