आवो, जाजम जमावां

सुणां अर सुणावां

अठी-उठी री बात भुला’र

अेक थाळी में खावां।

दांता काटी रोटी जियां

रिस्ता गाढा राखां

हिवड़ै में पड़गी गांठां नैं

गांव बारणै न्हाखां

आधी रोटी पे दाळ लेय’र

मिळबा री हुळस जगावां

आवो, जाजम जमावां।

मेड़ी पे जद बोल कागलो

म्हांनै यूं जतळावै

सांझ पड़यां तक आज पावणो

थांका आंगण आवै

तो हरख-हरा बीं रा स्वागत में

सगळा नैण बिछावां

आवो, जाजम जमावां।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : मनोज शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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