दुख रै

ईं अथाग दरियाव मांय

सुख रा

मोती ढ़ूंढ़तां-ढ़ूंढ़तां जाणै

मुकगी हुवै

अेक जूण!

पण

कद मिल्यो सुख

कद घट्यो दुख!

अर भाजतो रैयो अणथक,

जिंया

भाजतो रैवै मिरग

बगनो हुय'र

किस्तूरी मरीचिका लारै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : पूनमचंद गोदारा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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