जद सरद सोवणो चांदडलो ले मुस्कावै

रातडली हंस-हंस उफण-उफण रै जावै है

संसार प्राण रो, जगमग-जगमग प्यार लिया

जद ल्हैर-ल्हैर पर जोबनियो लैरावै है

सीतळ किरणा री मधरी रसभीनी आभा

नित नभ रो नुंवो-नुंवो सिणगार सजावै है

उण काची-कंवळी कळिया रा होठा माथै

बो प्रीत-गू वटो मुळकण भर मुस्कावै है

अळिया सूं कळिया रूठ-रूठ मुखडा फोरै

ढोलै री मीठी मनवारा नै पावण नै

रुत री राणी सुकवार बणी ज्यू अलबेली

बा मन रो धन ले चली हिया बस जावण नै

हरियाळो-पीळो ओढ ओढणो रुत रूडी

इण जीवण रो वरदाण अमर पा जावै है

कण-कण में मन रा भाव भर्‌या सम्मोहन सूं

बो उणमादी अभिसार लुटाया जावै है

बा धवळ-सेत-गिर री बाबा में उळझ्योडी

लीलै आमर री मेघपरी सरमावै है

अळसायै मधुवन-कुंजा री कळियां हंसती

इण नुवीं बीनणी रो घूंघट सिरकावै है

सित-मद-गुलाबी मलय बायरो रै-रै भेलै

पिय-मिलण-सनेसो होळै-होळै देवै

कुमळाई आसा रै अटक्योडा प्राणा में

नवजीवण रो विसवास फेर पूगा देवै

सूनो आभो सच्योडै इमरत-कळसै सूं

मन झकझोळै, आमीधारा बरसावै है

जिण सू कुदरत रै सुगणै आगणियै माथै

रस भर जोबन रो नुवो रूप प्रगटावै है

भर चाव नूवो, झाला देती बा मतवाळी

सिणगार सजाया अकनकवारी नाचै है

रितराज सजन रै काज, मान री मनवारा

ले सरद-कामणी नेव सनेसो बाचै है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के कवि ,
  • सिरजक : रामनाथ व्यास ‘परिकर’ ,
  • संपादक : रावत सारस्वत ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य संगम (अकादमी) बीकानेर ,
  • संस्करण : दूसरा संस्करण
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