सांप्रदायिकता पर कवितावां

सांप्रदायिकता संप्रदाय

विशेष से संबद्धता का प्रबल भाव है जो हितों के संघर्ष, कट्टरता और दूसरे संप्रदाय का अहित करने के रूप में प्रकट होता है। आधुनिक भारत में इस प्रवृत्ति का उभार एक प्रमुख चुनौती और ख़तरे के रूप में हुआ है और इससे संवाद में कविताओं ने बढ़-चढ़कर भूमिका निभाई है। इस चयन में सांप्रदायिकता को विषय बनाती और उसके संकट को रेखांकित करती कविताएँ संकलित की गई हैं।

कविता10

गांव : मातम रै माहौल में

चंद्रशेखर अरोड़ा

मोटियार

भंवर भादानी

ठग विद्या

सम्पत सरल

मोब लिंचिंग

चन्द्र प्रकाश देवल

सफदर हासमी री मौत

गोरधन सिंह शेखावत

बीह

चन्द्र प्रकाश देवल

स्याबास

गोरधन सिंह शेखावत

गंदी हवा

चंद्रशेखर अरोड़ा

ऐवुस थ्यु वैगा

भविष्यदत्त ‘भविष्य’

कांई करां हजूर!

चन्द्र प्रकाश देवल