जातिवाद पर कवितावां

भारतीय समाज के संदर्भ

में कवि कह गया है : ‘जाति नहीं जाती!’ प्रस्तुत चयन में जाति की विडंबना और जातिवाद के दंश के दर्द को बयान करती कविताएँ संकलित की गई हैं।

कविता42

मार्क्स

शिव बोधि

हीण कुण

प्रहलादराय पारीक

पिणघट

रेवतदान कल्पित

गांव-भांबी

चैनसिंह परिहार

मिनख

उम्मेद गोठवाल

ढिगळी होवण तांई

ओम पुरोहित ‘कागद’

थूं छतरी

विवेकदीप बौद्ध

किसमत

पवन सिहाग 'अनाम'

टूटोड़ी भींत बता...

चंद्रशेखर अरोड़ा

राजीनांवौ

मणि मधुकर

म्हारै देस में

आशाराम भार्गव

गळांई

पवन सिहाग 'अनाम'

योजनावां

उम्मेद गोठवाल

सवाल

लालचन्द मानव

पेपलौ चमार

उम्मेद गोठवाल

कलाकारी

सपना वर्मा

खिलाफ

उम्मेद गोठवाल

पी'र सासरौ

विमला महरिया 'मौज'

छळ

उम्मेद गोठवाल

मेहतर-राणीं

विष्णु विश्वास

डर

उम्मेद गोठवाल

बदळाव

उम्मेद गोठवाल

आखो गांव जद

सपना वर्मा

म्हारी जग्या राख'र देख

श्याम निर्मोही

बगत रौ हेलो

अर्जुनसिंह शेखावत

सिड़ांध

कुमार श्याम

ऊंच नीच

लालचन्द मानव

दलित

रामकुमार भाम्भू

लुणास

शिव बोधि

चेत

राजेन्द्र गौड़ 'धूळेट'

भींट

लालचन्द मानव

सवाल -2

लालचन्द मानव

अजै जैन स्यापौ हैं

उम्मेद गोठवाल

मीठो जै'र

श्याम निर्मोही

कंसळावां री कदर

मोनिका गौड़

डिस्टेसिंग

राजेन्द्र जोशी

तोड़ौ कारा तोड़ौ

उम्मेद गोठवाल

जात

उम्मेद गोठवाल

दुख रो कारण

राजकुमारी पारीक