सुणौ ठाकरां!

थारै गढ आगैकर

टिपती बगत

खुद री जूती

नीं धरसूं

सिर माथै,

सुणौ पंडतां!

थांनै आवता देखनै

गळी काठै

हाथ जोड़नै

नीं हुयसूं ऊभौ,

सुणौ चौधरयां!

थारी देहळी माथै

जूत्यां बिचाळै बैठनै

नीं जीमसूं रोटी,

नीं खुद री भोम

नीं खुद रौ धन

फगत

मिणत बेचूं खुद री,

म्हारौं पसीनौ है

जिकौ सींचै

थारा

गढ, मिंदर अर खेत।

स्रोत
  • पोथी : पेपलो चमार ,
  • सिरजक : उम्मेद गोठवाल ,
  • प्रकाशक : एकता प्रकाशन
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