जलम लेय धरती पूगिया

माटी अ'र मायड़ की गोद में

लोट लोट नै बडा हुया

खेल्या कूद्'या

मिनख बण्या!

थांको-म्हांको करतां

मतलब को ब्योपार सीख्यौ

भलायां-बुरायां देख्यी भुगती

लोक पिछाण्यौ!

नान्हां मोटां बीच खाइयां देखी

बेटां-बेटियां में भेद देखियो

मिनखां जिनावर बणता देख्या

लालचीड़ां की लपलपाती,

दूजां को हक डकारती,

लांबी जीभड़ियां देखी!

सुखड़ां का उच्छब

दुखड़ां का मेळा

जात धरम को भेद

ऊँचा कद औछा काज

मौकळा देख्या!

पाप का दीदा फाट्या

पुन्न की आँख्यां मीची

नाड़ नीची,

पाखंड्यां की पौबारा

सती-जति टोटा

रंग-रंगीला तीज तिंवार

तो काळा-धौळा कार

कूड़-कुमाई फळती

पण भीतर ऊँडी बळती देखी!

काण-कायदां का ढोंग

दिखावै की रीत्यां

लोक लाज सूं दबियोड़ै

मिनखां की तड़प देखी!

बढतो स्वारथ घटतो हेत

खिंचती दीवारां

घटता खेत

सूगलवाड़ै में सांस लेंवता

जगत को जोगाड़ खेंवता

देवी-देवता देख्या!

सरम सूं डूबतौ

घूंघटै में ढकियो सूरज

काळै मूंडै पर नकली स्यांती

ओढेड़ौ, चाँद सरीखो

डौळ देख्यो!

मुळकती भोर

सुबकती सिंझ्या

उडती खिंडती बळती दौपारी

बेसुध पड़ी रातां देखी!

चरचरै पाणी के बोझ सूं

दबियोड़ा, रोळौ मचांवंता,

ढुळता बादळ

माणसपण डबोवंती

बावळी सी भागती

नदियां देखी!

धूळ उडातो, फिरतो फालतू

दीन हीण का छापरिया उधेड़तो

पल्ला सरकांवतो कामणियां का

मदमस्त बायरो

भरमित हुयो अणसार

दौड़तो देख्यौ!

बिरहण के हीवड़ै ज्यूं

अणथक लाय लगातो

भूख गरीबी बीमारियां में

झुळसांवतो अंगारौ

बखेरतो बासते घरां-घरां

झाळां मरतो

अन्यायी अगन देख्यौ!

आथण हुयौ जीवणै को,

आडा पड़िया धरती माथै

सरक-सरक

दिन औछा करिया

पी'र की पौळियां

सासरै के दरूजां

मिनखाजूणी की मैं'मा देखी!

भलो निम्हायो मौज

लोक पी'र

परलोक सासरौ!

स्रोत
  • सिरजक : विमला महरिया 'मौज' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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