अेकटक

देखतो हो म्हैं

जगती उणरी

माटी री काया नैं...

काया जिण मांय

हो काल तांई वासो

इणरी आतमा रो।

चारूंमेर सोग मांय दिखै

उण रा घरवाळा

जिका देया करता हा

फगत अर फगत ओळमा-ताना

ऊमर भर इणनै-

आज रोवै बै किण नै...

इण माटी नै.!

का उण आतमा नै..!!

आं लोगां रो रोवणो

छेकड़ किण खातर

बखाणै जिका गुण

बै किण रा हा.?

छोडगी जिको सरीर

उण आतमा रा...

का सिळगै लाय में

माटी उण रा!

सरीर रो की मोल कोनी

मोल होवै आतमा रो।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : गौरीशंकर प्रजापत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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