रे मन !

थूं बार-बार क्यूं बदळै

नूंवा-नूंवा रूप धरै

पण कीं नीं करै

मिनख आं रूपां नै देख

मारग भटकै

सांसां अटकै

जीवतो मरण समान हुवै

पण मन

थूं देख मुळकै

मन नै मार

जूण रो सार!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : मधु आचार्य 'आशावादी'
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