थारै मिस

करूं म्हैं गुरबत

बायरै सूं

आखी आखी रात।

म्हैं सूंघूं

बायरै में

थारै हुवण री सौरम।

आभै तिणियै

इंदरधनख नै देखतां

म्हारै हिवड़ै

हुवै पतियारौ

के कठै-न-कठै

थूं है

अवस निरखती हुवैला

सतरंगी आभै नै

इणींज भांत।

इंदरधनख रै ओळावै

थारी निजरां सूं

अेकमेक हुय जावै

म्हारी निजरां।

कोसां धरती रै

आंतरै नै बिसरावतां

निजरां रै मारफत

मिलण रै इण सुख नै

म्हैं भोगूं

अर थूं...?

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मदन गोपाल लढ़ा ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम
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