हूंस पर कवितावां

हूंस, साहस वह मानसिक

बल या गुण है, जिसके द्वारा मनुष्य यथेष्ट ऊर्जा या साधन के अभाव में भी भारी कार्य कर बैठता है अथवा विपत्तियों या कठिनाइयों का मुक़ाबला करने में सक्षम होता है। इस चयन में साहस को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता115

खेत-स्क्रैप

मोनिका गौड़

घट्टी

मुकुट मणिराज

जातरा

किशन ‘प्रणय’

थारै प्रेम में

अनिता सैनी

मंजिल

गोरधन सिंह शेखावत

गुलेळ

हरीश सुवासिया

चोरी करी पण मै चोर कोनी

अवन्तिका तूनवाल

आस

संदीप 'निर्भय'

कद आ'य बो सवेरों

श्याम निर्मोही

जूंनौ तरवर

रेवतदान चारण कल्पित

आओ! हेलो मारां!

मंगत बादल

पिण आगै आगै हालौ

गणेशीलाल व्यास 'उस्ताद'

समै री डोर

इन्द्र प्रकाश श्रीमाली

जोवूं बाट

संदीप 'निर्भय'

तिरस

रचना शेखावत

आस निरास में

प्रमिला शंकर

भोळप

कुलदीप पारीक 'दीप'

आंबौ फळग्यौ रे

कल्याणसिंह राजावत

अरदास

प्रहलादराय पारीक

नुंवौ साल

मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'

सगती लछमी सार

ब्रजनारायण पुरोहित

मानखो

संजू श्रीमाली

बदळाव री हूंक

रतना ‘राहगीर’

बणिक रिश्ता

हरदान हर्ष

पखेरू नापे आकास

इन्द्र प्रकाश श्रीमाली

बोल चिड़कली बोल

राजू सारसर 'राज'

बेटियां

कृष्णा आचार्य

प्रेम सनैव

बसन्ती पंवार

खेत हर्‌या कद होसी

देवीलाल महिया

खास बात

मोहन आलोक

बूढ़ा बडेरा टाबर टोळी

कृष्णा आचार्य

हेताळू

कमर मेवाड़ी

निरखूं जग

राजेश कुमार व्यास

औ जीवण जीणो पड़सी

अवन्तिका तूनवाल

किण रो दोस?

रामनरेश सोनी

कांकरा

नलिनी कुम्भट

ढळता मोती

महेंद्र मोदी

बिस्वास राखजे

प्रहलादराय पारीक

मां अर बेटो

सत्येंद्र चारण

बीज

चंद्र सिंह बिरकाळी

जुड़ाव

गिरिजा शंकर शर्मा

हेत रो हींडौ

कृष्णा जाखड़

कद अेकलो ऊभो हूँ

संदीप 'निर्भय'

महारी आस

सत्येंद्र चारण

स्यात

सुमेरसिंह शेखावत

हूंस री डोर

हरीश सुवासिया

थारी प्रीत

पवन राजपुरोहित