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छंद
पद
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धन धरती मै धरै
मोहनदास जी
पहर गले में गुदड़ी
मोहनदास जी
साधो ऐसी खेती करिये
संत दरियाव जी
निराकार नहिं ना आकार
संत चरणदास
संतौ भेष भरम कछु नाहीं
रज्जब जी
दिलदार मेरे प्यारे
आत्माराम 'रामस्नेही संत'
अवधू अैसा खेल बिचारी
संत हरदास
रे मन सूर समै क्यूं भागै
रज्जब जी
दिलदार मेरे सइयाँ
आत्माराम 'रामस्नेही संत'
सुख सागर के मांहि
मोहनदास जी
ऐसे नहीं धीजिए
आत्माराम 'रामस्नेही संत'
मन वाणी अकल आणी बुधि वाणी तार
स्वामी देवादास जी
निसदिन तुम ही तुम कुं सिंवरूं
संत मूलदास जी
बाजीगर बाजी रची
हरिदास निरंजनी
संतौ बसुधा बिरिछ समाई
रज्जब जी
साधो भाई ऐसा मेरै गुरुजी का सरणा
संत मूलदास जी
साधो एक अचम्भा दीठा
संत दरियाव जी
संतो लखन बिहूंनी नारी
सुंदरदास जी
भेख बणायो गरज
मोहनदास जी
भगति भावै राम भगति भावै
रज्जब जी
जीव बटाउ रे बहतो भाई मारग माहिं
संत दरियाव जी
पति की ओर निहारिये
संत चरणदास
जागौ रे! अब नींद न कीजै
हरिदास निरंजनी
खड़ी टोपी मै
मोहनदास जी
संतौ आवै जाइ सु माया।
रज्जब जी
एक पिंजरा ऐसा आया
सुंदरदास जी
जाके उर उपजी नहिं भाई
संत दरियाव जी
गोबिंद दरसण पल पल पाऊं
संत मूलदास जी
चौरासी में दुख घणौ
संत मूलदास जी
अवधू सूतां कौ धन छीजै रै
संत हरदास
अवधू सब सुख की निधि पाई
संत हरदास
साधैं भूख मास उपवासी
परसजी खाती
मीठा बोलो निंव खिंव चालो
समसदीन
राम बिन भाव करम नहिं छूटै
संत दरियाव जी
सुख संपत मन जाय सरीरा
संत सेवगराम जी महाराज
संतौ ऐसा यहु आचारा
रज्जब जी
अवधू बैठां का गति नाहीं
संत हरदास
ऐसे पलकन छांड्यौ
स्वामी देवादास जी
सिंवरो उमति को राव
समसदीन
द्वार पधारै म्हारे संत गुरदेवा
संत मूलदास जी
हरि भगति बेलि मन में लगाय
आत्माराम 'रामस्नेही संत'
शील बिना नरकै परै
संत चरणदास
बुधि बेली लो, बेली लो
रज्जब जी
संतो! राम रजा मैं रहिये
हरिदास निरंजनी
पलक माहिं मर जाणा प्राणी
चेतनदास
अब मोहिं नाचत राखहु नाथ
रज्जब जी
कोई पिवै राम रस प्यासा रे
सुंदरदास जी
जुगत बिन सतरंज जीत न जानी
ऊमरदान लालस
अवधू कउवा तैं सर नासै
संत हरदास
संतौ आई बात बिगोवै
संत हरदास
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