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निर्गुण भक्ति काव्य पर संवैया
दूहा
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संवैया छंद
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छंद
संवैया छंद
14
गंभीर धीर बिरचि बीर
रज्जब जी
हरि बियोग बिघन मूल
रज्जब जी
सेवग अंध जाचंद
रज्जब जी
मौज करी गुरुदेव दया करि
सुंदरदास जी
परम पुरुष के पंथ चल्या जिन
छीतरदास
परी झर माहिं निकसत नाहिं
रज्जब जी
उठी उर जागि बिरह की आगि
रज्जब जी
जे पर सूर लहै सु महूरत
रज्जब जी
सूर स्यंध छेरे खाइ
रज्जब जी
हो ब्रह्मा बियोग ब्रह्मांड मैं सोग
रज्जब जी
अगम ही चाल अगम ही ज्याल
छीतरदास
सबद की सांगि लगी जेहि आंगि
रज्जब जी
सिंहिनी सुमति काढ़ि जे
रज्जब जी
लाहौर वरणाव
सुंदरदास जी