मोहन बासी उस देस का जहां निरंजन बास।

होय रह्या चानण गैव का बिन सूरज प्रकास।

मोहन बासी उस देस का जहां भूम नहीं आप।

तेज व्योम नहीं बाय है त्रगुण ना ही ताप॥

स्रोत
  • पोथी : संत कवि मोहनदास की वाणी और विचारों का अध्ययन ,
  • सिरजक : डाॅली प्रजापत ,
  • प्रकाशक : हिंदी विभाग, जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
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