संगीत पर कवितावां

रस की सृष्टि करने वाली

सुव्यवस्थित ध्वनि को संगीत कहा जाता है। इसमें प्रायः गायन, वादन और नृत्य तीनों शामिल माने जाते हैं। यह सभी मानव समाजों का एक सार्वभौमिक सांस्कृतिक पहलू है। विभिन्न सभ्यताओं में संगीत की लोकप्रियता के प्रमाण प्रागैतिहासिक काल से ही प्राप्त होने लगते हैं। भर्तृहरि ने साहित्य-संगीत-कला से विहीन व्यक्ति को पूँछ-सींग रहित साक्षात् पशु कहा है। इस चयन में संगीत-कला को विषय बनाती कविताओं को शामिल किया गया है।

कविता11

लोप व्हैण नै ताखड़ौ

चन्द्र प्रकाश देवल

अनोखै लाल रौ तबला वादन

नारायण सिंह भाटी

गवरी से गावणौ

नारायण सिंह भाटी

सोरठ

नारायण सिंह भाटी

बाजो

सत्यनारायण ‘सत्य’

साचीलो सुर

रेणुका व्यास 'नीलम'

इतरावे क्यूं?

भगवान सैनी

म्हारो प्रणाम!

राजेश कुमार व्यास

मन रा सुर

धनंजया अमरावत

तर-तर बसै सौरम

राजेश कुमार व्यास