जलम्यो जद सूं

बाज रैयो हूं

अणथक्यो, अणभायो, अणचायो।

कींकर, बाजण सूं

म्हारै साथै रा लोग-बाग

कैवै है कै

म्हारै बाजबा सूं

जिनगाणी रा साचा

रूप निखरै,

च्यारूंमेर

हीरा-मोती बिखरै।

कीं-कीं लोगां नैं

म्हैं लागूं मिंदर मांयली घंटी

अर आवता-जावता लोग,

म्हनैं बजाय

आपरो धरम निभावै।

म्हनैं बजावै

अर फेर भी म्हनैं चावै!

कोई म्हनैं ढोल समझै

कोई पूंपाड़ी

कोई सीटी अर कोई बांकियो,

पण भायला

म्हूं बाजतो थको

अबार तांई नीं थाक्यो

अजै तांई बाज रैयो हूं

बाजा रो झुणझणो बण’र,

सोचूं हूं-

कदैई तो तुटैला

लोगां री नींद

म्हारै बाजणै सूं!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सत्यनारायण ‘सत्य’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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