विडरूपता पर कवितावां

सामाजिक जीवण में आपां

रै असवाड़ै-पसवाड़ै अेड़ी केई विसमतावां हुवै जिणा सूं मिनख रौ जीवणौ, न जीवणै जेड़ौ हो ज्यावै। अठै संकलित रचनावां ई विसै सूं ई जुड़ियोड़ी है।

कविता183

काळ

मणि मधुकर

आत्महंता

त्रिभुवन

थूं कद जीवती ही मां

अर्जुनदेव चारण

जे म्हैं आदमी होऊँ

विमला महरिया 'मौज'

सातवौं फेरौ

अर्जुनदेव चारण

इण तरै रा सून्याड़ में

भगवती लाल व्यास

भूतणीं

विमला महरिया 'मौज'

बंटवारो

भगवती लाल व्यास

घर कठै है

अर्जुनदेव चारण

म्हूँ जनता हूँ

भगवती लाल व्यास

मजूर रौ दिन

अर्जुनदेव चारण

अेकली

मणि मधुकर

निमित्त

सत्येन जोशी

तीजी रेख

अर्जुनदेव चारण

घर

नीरज दइया

काल थे खुद

सांवर दइया

म्हैं

मोहन आलोक

साख राणी उमादे री

सत्यप्रकाश जोशी

ओ काळधिराणी कंकाळी

किशोर कल्पनाकान्त

कुणस

प्रेमजी ‘प्रेम’

भूख मरगी

पारस अरोड़ा

अद्भुत छिण

गोरधन सिंह शेखावत

परमेसर

प्रेमजी ‘प्रेम’

कीड़ी चुगो

भगवती लाल व्यास

जका बखत नै सैसी

वासु आचार्य

मयलौ

उपेन्द्र अणु

लाचारी

मणि मधुकर

लक्खण

प्रेमजी ‘प्रेम’

गुवाड़ रो जायो

मोहम्मद सदीक

भींत

विनोद स्वामी

सपना

अर्जुनदेव चारण

हिसाब

पारस अरोड़ा

नरकवाड़ौ

मणि मधुकर

पोमीजा आपां

नीरज दइया

हूंणी

मणि मधुकर

अेलांन

मणि मधुकर

सती

अर्जुनदेव चारण

जद तूटै अंबर सूं तारौ

रेवतदान चारण कल्पित

बगावत

रेवतदान चारण कल्पित

कठै सूं ऊपजै आ आग

हरीश भादानी

अन्तस उठ बोल्यो

मोहम्मद सदीक

आपणी लेखणी सूं

विमला भंडारी