विडरूपता पर कवितावां

सामाजिक जीवण में आपां

रै असवाड़ै-पसवाड़ै अेड़ी केई विसमतावां हुवै जिणा सूं मिनख रौ जीवणौ, न जीवणै जेड़ौ हो ज्यावै। अठै संकलित रचनावां ई विसै सूं ई जुड़ियोड़ी है।

कविता78

आत्महंता

त्रिभुवन

जे म्हैं आदमी होऊँ

विमला महरिया 'मौज'

भूतणीं

विमला महरिया 'मौज'

अजै जूझणो पड़सी

मोहम्मद सदीक

मारग रै सीगै

चन्द्र प्रकाश देवल

थारी गाथा

अर्जुन देव चारण

घर कठै है

अर्जुन देव चारण

सफदर हासमी री मौत

गोरधन सिंह शेखावत

वो भेजै थनै

अर्जुन देव चारण

उडीक

पारस अरोड़ा

भविस

मणि मधुकर

सांप

त्रिभुवन

आं दिनां में

गोरधन सिंह शेखावत

निमित्त

सत्येन जोशी

तीजी रेख

अर्जुन देव चारण

बेम्मार

मणि मधुकर

ढाल

भोगीलाल पाटीदार

बापू रौ बिलम

रेवतदान चारण कल्पित

कांई मिल्यो!

बी.एल.माली

रेत अर लुगाई

प्रेमलता सोनी

हित्या रौ उच्छब

अर्जुन देव चारण

ओळखाण

मणि मधुकर

बळीतौ

मणि मधुकर

निजारौ

मणि मधुकर

ईसरलाल

मणि मधुकर

न्हारवौ

मणि मधुकर

लोकराज

मणि मधुकर

इतियास

अर्जुन देव चारण

सवाग

सत्यप्रकाश जोशी

टूटोड़ी भींत बता...

चंद्रशेखर अरोड़ा

काळ

भगवान सैनी

चौफेर

मोहम्मद सदीक

घणी खम्मां

मणि मधुकर

बाकी हिसाब

पारस अरोड़ा

म्हूँ अछूत

मुकुट मणिराज

ब्रितांत

मणि मधुकर

ओ कुण

मोहम्मद सदीक

मसाणा में लाडली

विमला महरिया 'मौज'

काळ/ अकाळ/ महाकाळ

रेवतदान चारण कल्पित

रातिंदो

गोरधन सिंह शेखावत

आज री नारी

रमेश मयंक

पनजी मारू

गोरधन सिंह शेखावत

आँच ही आँच

मोहम्मद सदीक

मौसम री मार

पारस अरोड़ा